भारत की स्वतंत्रता की क्रांति की जब भी बात होती है तो 1857 की क्रांति को आजादी की पहली क्रांति बताया जाता है जबकि ये सच्चाई नहीं है इससे पहले भी एक आजादी की लड़ाई लड़ी गयी जो सिर्फ आदिवासियों द्वारा लड़ी गयी इतिहास में इसे 'संथाल क्रांति' या संथाल हुल' के नाम से जाना जाता है
इस क्रांति का नेतत्व सिद्दू और कान्हू नाम के दो आदिवासी भाइयो ने किया था ये विद्रोह 30 जून 1955 को शिरु हुआ विद्रोह की बजह थी की आदिवासी जल, जंगल और जमीन पर सदियों से अपना हक मानते आ रहे है और अंग्रेजो ने उन पर मालगुजारी कर लगा दिया इसके विरुद्ध आदिवासियों ने सिद्दू और कान्हू के नेतत्व में विद्रोह कर दिया इस कर से आदिवासी अंग्रेजो से इतने चिढ़ गए कि उन्होंने 'करो या मरो' और 'अंग्रेजो हमारी माटी छोडो' के नारे दिए। पूरा आदिबासी समाज इस लड़ाई में एकजुट था लेकिन उनके पास अंग्रेजो से लड़ने के लिए सिर्फ तीर कमान या लाठी डण्डे ही थे जबकि अंग्रेजो के पास तोपे थी और अंग्रेजो ने लड़ाई में तोपो का इस्तेमाल किया जिसमें 20 हजार आदिवासियों ने अपनी जल, जंगल और जमीन के लिये जान की कुर्बानी दी
इस क्रांति पर कई इतिहासकारों ने अपनी टिपणी दी जिनमे एक प्रोफ़ेसर विमलेश्वर झा ने लिखा है कि इस लड़ाई का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि कार्ल मार्क्स ने अपनी पुस्तक , नोट्स ऑफ़ इन्डियन हिस्ट्री' में लिखा है कि जून 1855 की संथाल क्रांति एक जन क्रांति थी
लेकिन इस क्रांति को भारतीय इतिहास में वो जगह आज भी नहीं मिल पायी क्या आदिवासियों की कुर्वानी इतनी सस्ती है


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