ये है देश का सबसे अमीर मंदिर, खजाने से कहां गायब हुआ 776 KG सोना?
तिरुवनंतपुरम. देश के सबसे अमीर पद्मनाभस्वामी मंदिर के खजाने से 776 किलो सोना गायब हो गया। कैग की ऑडिट रिपोर्ट में बड़ी गड़बड़ी का खुलासा हुआ। कहा गया है कि मंदिर प्रशासन में जमकर करप्शन हुआ। यहां सोने के बर्तनों की संख्या 1166 होनी चाहिए, लेकिन फिलहाल 397 ही मौजूद हैं। यानी शुद्धिकरण के नाम पर 769 बर्तन (वजन-776 KG) ग़ायब हो चुके हैं। जिनकी कीमत 186 करोड़ रुपए बताई गई है। बता दें कि अक्टूबर, 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व सीएजी चीफ विनोद राय को मंदिर के खजाने की ऑडिट रिपोर्ट देने को कहा था। मंदिर के पास एक लाख करोड़ का खजाना...
- सीनियर वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने सुप्रीम कोर्ट को कैग से ऑडिट कराने का सुझाव दिया था।
- इसके पहले 2011 में कैग की निगरानी में पद्मनाभस्वामी मंदिर से एक लाख करोड़ रुपए का खजाना निकला था।
- रिपोर्ट की मानें तो मंदिर में 14.18 लाख रुपए का सोना और चांदी नादवारव रजिस्टर में दर्ज नहीं है जो गैरकानूनी है।
- मंदिर ट्रस्ट पर 1970 में गैरकानूनी तरीके से 2.11 एकड़ जमीन बेचने का आरोप लगा था। मंदिर के खर्च में अचानक बढ़ोतरी हुई।
- माना जाता है कि पद्मनाभस्वामी मंदिर में मौजूद सोना, चांदी और हीरों की कीमत एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा है।
- मंदिर ट्रस्ट पर 1970 में गैरकानूनी तरीके से 2.11 एकड़ जमीन बेचने का आरोप लगा था। मंदिर के खर्च में अचानक बढ़ोतरी हुई।
- माना जाता है कि पद्मनाभस्वामी मंदिर में मौजूद सोना, चांदी और हीरों की कीमत एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा है।
क्या है मंदिर की कहानी?
- भगवान विष्णु को समर्पित पद्मनाभस्वामी मंदिर दो हजार साल पुराना है, जिसे त्रावणकोर के राजाओं ने बनाया।
- इसका जिक्र 9वीं सदी के ग्रंथों में मिलता है, लेकिन मंदिर के मौजूदा स्वरूप को 18वीं शताब्दी में बनाया गया।
- मान्यता है कि इस जगह विष्णु की मूर्ति मिली थी, इसके बाद राजा मार्तण्ड ने यहां मंदिर बनवाया।
- 1750 में मार्तण्ड ने खुद को पद्मनाभ का दास बताया और त्रावणकोर शाही परिवार ने खुद को भगवान के लिए समर्पित कर दिया।
- माना जाता है कि इसी वजह से त्रावणकोर के राजाओं ने अपनी सारी दौलत पद्मनाभ मंदिर को सौंप दी।
- हालांकि, त्रावणकोर के राजाओं ने 1947 तक राज किया। आजादी के बाद इसे भारत में शामिल कर लिया।
- लेकिन पद्मनाभस्वामी मंदिर को सरकार ने कब्जे में नहीं लिया। इसे त्रावणकोर के शाही परिवार के पास ही रहने दिया।
- तब से मंदिर का कामकाज शाही परिवार के अधीन एक प्राइवेट ट्रस्ट चलाता आ रहा है।
- इसका जिक्र 9वीं सदी के ग्रंथों में मिलता है, लेकिन मंदिर के मौजूदा स्वरूप को 18वीं शताब्दी में बनाया गया।
- मान्यता है कि इस जगह विष्णु की मूर्ति मिली थी, इसके बाद राजा मार्तण्ड ने यहां मंदिर बनवाया।
- 1750 में मार्तण्ड ने खुद को पद्मनाभ का दास बताया और त्रावणकोर शाही परिवार ने खुद को भगवान के लिए समर्पित कर दिया।
- माना जाता है कि इसी वजह से त्रावणकोर के राजाओं ने अपनी सारी दौलत पद्मनाभ मंदिर को सौंप दी।
- हालांकि, त्रावणकोर के राजाओं ने 1947 तक राज किया। आजादी के बाद इसे भारत में शामिल कर लिया।
- लेकिन पद्मनाभस्वामी मंदिर को सरकार ने कब्जे में नहीं लिया। इसे त्रावणकोर के शाही परिवार के पास ही रहने दिया।
- तब से मंदिर का कामकाज शाही परिवार के अधीन एक प्राइवेट ट्रस्ट चलाता आ रहा है।
Comments