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Showing posts from October, 2016

दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं!

ये दिवाली आपके जीवन में खुशियों की बरसात लाए, धन और शौहरत की बौछार करे, दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं!

स्व सहायता समूहों के लिए लघु ऋण योजना

स्व सहायता समूहों के लिए लघु ऋण योजना इस योजना का लक्ष्य केवल वर्तमान में लाभ कमाने वाली स्व सहायता समूहों के माध्यम से पात्र अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों के लिए स्व रोजगार उद्यम गतिविधियां चलाने हेतु लघु ऋण उपलब्ध कराना है । (i.)    सहायता की प्रमात्राः- (क) एनएसटीएफडीसी 35000/-रुपए तक प्रति सदस्य एवं अधिकतम 5.00 लाख रुपए तक प्रति स्व सहायता समूहों के लिए ऋण उपलब्ध कराता है । राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियां अपनी मानदंडों के अनुसार लक्ष्य समूह के लिए पात्र सब्सिडी राशि /मार्जिन मनी उपलब्ध कराएगी एवं बाकी राशि एनएसटीएफडीसी द्वारा मियादी ऋण की तरह उपलब्ध कराई जा सकती है (ख) यदि किसी मामले में राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियां सब्सिडी ऋण एवं मार्जिन मनी उपलब्ध कराने में असमर्थ हों तो एनएसटीएफडीसी जरूरी ऋण का 100% मियादी ऋण की तरह उपलब्ध करा सकती है । (ii)   आवृति ऋणः-           स्व सहायता समूहों को आवृति ऋण दिया जा सकता है । हालांकि एनएसटीएफडीसी योजना के अंतर्गत स्व सहायता समूहों द्वारा राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों से लिया गया पूर्व ऋण राज्य चैनेलाइजिंग एजेंसियों को तथा उसके समान

आदिवासी महिला

20 हजार आदिवासियों की कुर्बानी से शिरु हुई आजादी की लड़ाई

भारत की स्वतंत्रता की क्रांति की जब भी बात होती है तो 1857 की क्रांति को आजादी की पहली क्रांति बताया जा ता है जबकि ये सच्चाई नहीं है इससे पहले भी एक आजादी की लड़ाई लड़ी गयी जो सिर्फ आदिवासियों द्वारा लड़ी गयी इतिहास में इसे 'संथाल क्रांति' या संथाल हुल' के नाम से जाना जाता है इस क्रांति का नेतत्व सिद्दू और कान्हू नाम के दो आदिवासी भाइयो ने किया था ये विद्रोह 30 जून 1955 को शिरु हुआ विद्रोह की बजह थी की आदिवासी जल, जंगल और जमीन पर सदियों से अपना हक मानते आ रहे है और अंग्रेजो ने उन पर मालगुजारी कर लगा दिया इसके विरुद्ध आदिवासियों ने सिद्दू और कान्हू के नेतत्व में विद्रोह कर दिया इस कर से आदिवासी अंग्रेजो से इतने चिढ़ गए कि उन्होंने 'करो या मरो' और 'अंग्रेजो हमारी माटी छोडो' के नारे दिए। पूरा आदिबासी समाज इस लड़ाई में एकजुट था लेकिन उनके पास अंग्रेजो से लड़ने के लिए सिर्फ तीर कमान या लाठी डण्डे ही थे जबकि अंग्रेजो के पास तोपे थी और अंग्रेजो ने लड़ाई में तोपो का इस्तेमाल किया जिसमें 20 हजार आदिवासियों ने अपनी जल, जंगल और जमीन के लिये जान की कुर्बानी दी इस क्रांति पर क